सरकारी स्कूलों में मीडिया  द्वारा बिना अनुमति की फोटो खींचने और वीडियो बनाने पर प्रतिबन्ध

सरकारी स्कूलों में मीडिया  द्वारा बिना अनुमति की फोटो खींचने और वीडियो बनाने पर प्रतिबन्ध

शिक्षा का क्षेत्र समाज के विकास की नींव है। विद्यालय वह स्थल है जहां बच्चों को ज्ञान, नैतिकता और अनुशासन सिखाया जाता है। ऐसे में विद्यालय की गरिमा को बनाए रखना बहुत जरूरी है। हाल ही में बिहार के सीतामढ़ी जिले के जिला शिक्षा पदाधिकारी ने एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया है। इस निर्देश में सरकारी विद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में मीडिया पेशेवरों या अन्य बाहरी व्यक्तियों द्वारा अनुमति के बिना फोटो खींचने और वीडियो बनाने पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। यह निर्देश न केवल शिक्षा व्यवस्था की मर्यादा को बनाये रखने में महत्वपूर्ण है, बल्कि यह विद्यार्थियों और शिक्षकों की गोपनीयता की सुरक्षा के लिए भी सकारात्मक कदम है।

सीतामढ़ी जिले के जिला शिक्षा पदाधिकारी ने पत्र संख्या 1696, दिनांक 19 मार्च 2024 को यह निर्देश जारी किया है। इस निर्देश में निम्नलिखित बिंदुओं को प्रमुखता से बताया गया है:

  1. अनधिकृत फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी पर निषेध
    • अब कोई भी मीडिया कर्मी या अन्य व्यक्ति सरकारी विद्यालय या शैक्षणिक संस्थान में बिना अनुमति के फोटो या वीडियो लेने के लिए अधिकृत नहीं हैं। यदि कोई ऐसा करता है, तो उसे अवैध समझा जाएगा।
  2. केवल अनुमति प्राप्त व्यक्ति ही कर सकते हैं फोटोग्राफी
    • यदि किसी कारणवश फोटो या वीडियो लेना आवश्यक हो, तो संबंधित अधिकारी से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य होगा।
  3. विद्यार्थियों और शिक्षकों की गोपनीयता की रक्षा
    • विद्यालय परिसर में छात्रों और शिक्षकों की गोपनीयता का आदर करना बहुत जरूरी है। उनकी अनुमति के बिना उनकी फोटो या वीडियो लेना उनके व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन है।
  4. प्रधानाध्यापक को जिम्मेदारी सौंपी गई
    • निर्देश के तहत सभी प्रधानाध्यापकों को निर्देश दिया गया है कि वे इस निर्देश का पालन सुनिश्चित करें और अपने विद्यालय के सभी शिक्षकों और विद्यार्थियों को इस निर्देश के बारे में जानकारी प्रदान करें।

सीतामढ़ी जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग ने हाल के दिनों में सरकारी स्कूलों में बिना अनुमति के मीडिया द्वारा फोटो और वीडियो लेने की घटनाओं के चलते यह निर्णय लिया। इन गतिविधियों ने न केवल स्कूलों के शैक्षिक वातावरण पर नकारात्मक असर डाला, बल्कि छात्रों और शिक्षकों की गोपनीयता को भी खतरे में डाल दिया। कई बार मीडिया के लोग बगैर पूर्व सूचना या इजाजत के स्कूल के मैदान में घुस आते थे और वहां की तस्वीरों या वीडियो को सार्वजनिक मंचों पर साझा कर देते थे। इस स्थिति के कारण स्कूल प्रशासन और अभिभावकों में असंतोष उत्पन्न हो रहा था।

साथ ही, कुछ घटनाओं में यह देखा गया कि इन गतिविधियों का गलत संदर्भ में उपयोग किया जा रहा था, जिससे स्कूलों की प्रतिष्ठा को नुकसान भोगना पड़ रहा था। उदाहरण के लिए, कोई मामूली घटना को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना या संदर्भ से बाहर के वीडियो का प्रदर्शन करना आम हो गया था। शिक्षा विभाग इस बात पर जोर देता है कि इस प्रकार की अनधिकृत क्रियाकलापें स्कूलों के मुख्य उद्देश्य, यानी शिक्षा देना, को बाधित करती हैं। इसलिए, ऐसी गतिविधियों को रोकना बेहद जरूरी हो गया है।

शिक्षा विभाग का यह कदम कई प्रकार से महत्वपूर्ण है।

  • इसका उद्देश्य छात्रों की सुरक्षा और गोपनीयता है। स्कूल एक ऐसा स्थान है जहां बच्चे अपनी प्रारंभिक शिक्षा लेते हैं और उनका मानसिक विकास होता है। अगर कोई बाहरी व्यक्ति उनकी अनुमति के बिना तस्वीरें या वीडियो बनाता है, तो यह उनकी निजता का उल्लंघन हो सकता है। इसके अलावा, ऐसी सामग्रियों का दुरुपयोग होने का खतरा भी रहता है, जो बच्चों के भविष्य के लिए चिंता का कारण बन सकता है।
  • शिक्षकों और स्कूल स्टाफ की कार्यक्षमता को बनाए रखना भी इस कदम का एक उद्देश्य है। जब पत्रकार अचानक स्कूल में आकर कार्य शुरू करते हैं, तो इससे कक्षा में पढ़ाई का माहौल प्रभावित होता है। शिक्षक और छात्र दोनों का ध्यान भंग होता है, जो शैक्षणिक गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। इस तरह की गतिविधियां स्कूल के सामान्य क्रियाकलापों में भी रुकावट डालती हैं।
  • यह निर्णय स्कूलों की गरिमा और प्रतिष्ठा को संरक्षित करने के लिए भी लिया गया है। कई बार देखा गया है कि मीडिया द्वारा क्यूरेट की गई तस्वीरें या वीडियो गलत संदर्भ में प्रस्तुत होते हैं, जिससे स्कूल की छवि को क्षति पहुँचती है। यह सिर्फ़ स्कूल प्रशासन के लिए ही नहीं, बल्कि अभिभावकों और समाज के लिए भी एक चिंता का विषय बन जाता है।

आधुनिक डिजिटल युग में सोशल मीडिया की पहुंच सभी तक है। लेकिन यदि इसका दुरुपयोग किया जाए तो यह कई समस्याएं उत्पन्न कर सकता है। यदि विद्यालय में छात्रों की तस्वीरें या वीडियो बिना अनुमति के लिए जाते हैं और उन्हें गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है तो:

  • छात्रों की गोपनीयता का उल्लंघन होता है।
  • शिक्षकों और विद्यालय प्रशासन की छवि को नुकसान पहुंच सकता है।
  • समाज में गलत संदेश फैलता है।
  • छात्रों और उनके अभिभावकों की चिंता बढ़ जाती है।

सरकारी विद्यालय समाज के वंचित वर्ग के बच्चों का शिक्षा केंद्र हैं। यहां आने वाले छात्रों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति विभिन्न होती है। ऐसे में विद्यालय परिसर में अनुशासन और आदर्श बनाए रखना बहुत जरूरी है। यदि किसी बाहरी व्यक्ति को विद्यालय परिसर में तस्वीरें या वीडियो बनाने की अनुमति दी जाए, तो इस का दुरुपयोग होने की संभावना बढ़ जाती है।

इसलिए, इस आदेश के जरिए सरकारी विद्यालयों की गरिमा को सुरक्षित रखा जाएगा और छात्रों को एक सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण मिलेगा।

इस आदेश का पालन सुनिश्चित करने में प्रधानाध्यापक और शिक्षकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्हें विद्यालय परिसर में आने वाले बाहरी व्यक्तियों की पहचान करनी चाहिए और बिना अनुमति किसी को भी तस्वीरें या वीडियो बनाने की इजाजत नहीं देनी चाहिए।

इसके अतिरिक्त, विद्यालय के द्वार पर एक सूचना बोर्ड लगाया जाना चाहिए, जिसमें स्पष्ट रूप से लिखा हो कि “बिना अनुमति के फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी निषिद्ध है।”

इस नियम को लागू करने के लिए स्थानीय प्रशासन और विद्यालय प्रबंधन को सहयोग करके काम करना जरूरी है। स्कूलों के प्रवेश द्वार पर सुरक्षाकर्मी तैनात किए जा सकते हैं, जो यह सुनिश्चित करेंगे कि बिना अनुमति के कोई व्यक्ति अंदर न जा सके। इसके अलावा, विद्यालयों में वीडियो निगरानी कैमरे लगाने की योजना बनाई जा सकती है, ताकि सभी गतिविधियों पर नजर रखी जा सके।

शिक्षकों और स्कूल स्टाफ को भी इस नियम के प्रति जागरूक किया जाएगा, ताकि वे किसी भी संदिग्ध घटना की जानकारी तुरंत प्रशासन को दे सकें। जिला शिक्षा अधिकारी को अनुमति देने या उसे अस्वीकार करने का अधिकार दिया गया है। यह प्रक्रिया साफ-सुथरी और तेज होगी, ताकि आवश्यक मामलों में मीडिया को कवरेज देने में कोई देरी न हो।

इस फैसले का समाज और शिक्षा के क्षेत्र पर कई तरह से प्रभाव देखा जा सकता है। सबसे पहले, यह स्कूलों को एक सुरक्षित और गोपनीय स्थान बनाने में सहायता करेगा। माता-पिता अब यकीन कर सकते हैं कि उनके बच्चों के चित्र या वीडियो उनकी अनुमति के बिना सार्वजनिक नहीं किए जाएंगे। इसके परिणामस्वरूप, माता-पिता का स्कूल प्रशासन पर भरोसा मजबूत होगा।

दूसरी ओर, यह निर्णय मीडिया की स्वतंत्रता पर भी सवाल उठा सकता है। कुछ का मानना है कि यह प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला हो सकता है। हालांकि, शिक्षा विभाग ने यह स्पष्ट किया है कि यह एक पूर्ण प्रतिबंध नहीं है, बल्कि एक विनियमित प्रक्रिया है। यदि कोई समाचार संगठन स्कूल से जुड़ी किसी खबर का कवरेज करना चाहता है, तो उसे पहले अनुमति प्राप्त करनी होगी। इससे यह सुनिश्चित होगा कि रिपोर्ट उचित संदर्भ में और जिम्मेदारी से की जाए।

शिक्षा के क्षेत्र में यह निर्णय शैक्षिक गुणवत्ता को सुधारने में भी मददगार साबित हो सकता है। जब स्कूल का वातावरण बाहरी हस्तक्षेप से मुक्त रहेगा, तो शिक्षक और छात्र दोनों ही अपने कार्य पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेंगे। इस प्रकार, पढ़ाई का स्तर बेहतर होगा और स्कूलों के प्रदर्शन में सुधार होगा।

यह निर्देश हर नागरिक के लिए एक चेतावनी है कि स्कूल एक पवित्र स्थल हैं। यहाँ शिक्षा लेने वाले छात्रों की मान-सम्मान की सुरक्षा हमारी समस्त जिम्मेदारी है। अगर किसी स्कूल में कोई समस्या उत्पन्न होती है, तो उसे उचित तरीकों से संबंधित अधिकारियों तक पहुँचाना चाहिए, बजाय इसके कि बिना अनुमति के तस्वीरें या वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर डालें।

यदि कोई व्यक्ति इस आदेश का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ विभागीय जांच की जाएगी और आवश्यकतानुसार अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जा सकती है। यह कार्रवाई जिला शिक्षा अधिकारी के स्तर पर की जाएगी। इसके लिए प्रधानाध्यापक को लिखित शिकायत दर्ज करनी होगी।


सीतामढ़ी के जिला शिक्षा अधिकारी का यह निर्देश एक प्रशंसनीय पहल है। इससे न केवल सरकारी स्कूलों की प्रतिष्ठा कायम रहेगी, बल्कि छात्रों और शिक्षकों की व्यक्तिगतता भी संरक्षित होगी। हर व्यक्ति को इस निर्देश का पालन करना चाहिए और अपने स्तर पर स्कूलों में शांति और अनुशासन के माहौल को बनाए रखने में मदद करनी चाहिए।