बिहार सरकार ने 12 मार्च 2025 को, बिहार सरकार ने अपने नियोजित कर्मचारियों और उनके आश्रितों के चिकित्सा खर्चों की प्रतिपूर्ति पर एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया। यह निर्णय स्वास्थ्य विभाग द्वारा सं0-14/विविध-05/2021 के तहत जारी किया गया है, जिसमें चिकित्सा खर्च की सीमा और स्वीकृति प्रक्रिया में सुधार किया गया है। इस संशोधन का लक्ष्य कर्मचारियों के दावों का शीघ्र निपटारा सुनिश्चित करना और अव्यवस्थित देरी को कम करना है। इस लेख में, हम इस निर्णय के मुख्य बिंदुओं, इसके प्रभाव और इससे जुड़े फायदों के बारे में चर्चा करेंगे।
निर्णय का परिचय और पृष्ठभूमि
बिहार सरकार ने अपने कर्मचारियों और उनके आश्रितों को चिकित्सा सेवाएँ बेहतर करने के लिए समय-समय पर नियमों में परिवर्तन किया है। पहले, स्वास्थ्य विभाग के निर्णय संख्या-946(14), दिनांक 14 अगस्त 2015 के तहत, चिकित्सा खर्च की प्रतिपूर्ति की सीमा 50,000 रुपये निर्धारित की गई थी। इस सीमा तक के खर्च की स्वीकृति संबंधित जिले के सिविल सर्जन द्वारा दी गई थी, जो खर्च की वैधता और सही जानकारी की जांच करने के बाद नियंत्रक अधिकारी को अनुमति देते थे। इसके बाद, निर्णय संख्या-1462(14), दिनांक 16 अगस्त 2021 के माध्यम से इस प्रणाली को बनाए रखा गया।
हालांकि, समय के बदलाव और चिकित्सा लागत में वृद्धि को देखते हुए, सरकार ने इस प्रक्रिया में सुधार करने का निर्णय लिया। नए संकल्प के अंतर्गत चिकित्सा खर्च की सीमा बढ़ाई गई है और स्वीकृति प्रक्रिया को सरल बनाया गया है। यह निर्णय कर्मचारियों के लिए राहतकारी है, क्योंकि अब उनके चिकित्सा दावों का निपटान अधिक तेजी से किया जाएगा।
संशोधन के मुख्य बिंदु
नए निर्णय में चिकित्सा खर्च की प्रतिपूर्ति की सीमा और स्वीकृति प्रक्रिया में निम्नलिखित परिवर्तन किए गए हैं:
- सीमा में वृद्धि और स्वीकृति प्रक्रिया
- 1,00,000 रुपये तक: अब 1 लाख रुपये तक के चिकित्सा खर्च की प्रतिपूर्ति के लिए संबंधित जिले के सिविल सर्जन को अधिकृत किया गया है। पहले यह सीमा 50,000 रुपये थी। सिविल सर्जन द्वारा बिलों की जांच और हस्ताक्षर के बाद यह राशि नियंत्रक अधिकारी को भेजी जाएगी।
- 1,00,001 रुपये से अधिक: 1 लाख रुपये से अधिक के खर्च की स्वीकृति के लिए एक नई प्रक्रिया लागू की गई है। इसके लिए संबंधित मेडिकल कॉलेज या अस्पताल के अधीक्षक की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जाएगा। इस समिति की सिफारिश पर प्रशासकीय विभाग के उच्च अधिकारी (अपर मुख्य सचिव, प्रधान सचिव, या सचिव) अंतिम स्वीकृति देंगे।

पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल: पटना प्रमंडल के पटना जिले के लिए।
इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना: पटना प्रमंडल के भोजपुर, बक्सर, रोहतास और कैमूर जिलों के लिए।
श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज, मुजफ्फरपुर: तिरहुत प्रमंडल के लिए।
2. जांच और स्वीकृति के लिए मेडिकल कॉलेजों की भूमिका
सरकार ने विभिन्न मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों को निर्धारित जिलों और प्रमंडलों की जिम्मेदारी दी है। जैसे कि:
- पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल: पटना प्रमंडल के पटना जिले के लिए।
- इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना: पटना प्रमंडल के भोजपुर, बक्सर, रोहतास और कैमूर जिलों के लिए।
- श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज, मुजफ्फरपुर: तिरहुत प्रमंडल के लिए।
यदि किसी मेडिकल कॉलेज में आवश्यक विभाग उपलब्ध नहीं है, तो पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अधीक्षक जांच और स्वीकृति का कार्य करेंगे।
3. तीन सदस्यीय समिति का गठन
- हर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में अधीक्षक की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की एक समिति बनेगी। इसमें औषधि विभाग और शल्य चिकित्सा विभाग के प्रमुख शामिल होंगे। आवश्यकता पड़ने पर, अधीक्षक अन्य विभागों के प्रमुखों को विशेष आमंत्रित सदस्यों के रूप में शामिल कर सकते हैं।
- यह समिति सप्ताह में दो बार बैठक करके बिलों की जांच करेगी और उन्हें प्रशासी विभाग को भेजेगी।
4. प्रक्रिया में लचीलापन
- स्वास्थ्य विभाग को इस प्रक्रिया में किसी भी समय बदलाव करने का अधिकार दिया गया है। इससे भविष्य में आवश्यकतानुसार त्वरित निर्णय लेना संभव होगा।
संशोधन का उद्देश्य और लाभ
इस संशोधन का मुख्य उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों और उनके आश्रितों के चिकित्सा दावों का जल्द निपटारा करना है। पहले की व्यवस्था में 50,000 रुपये की सीमा के कारण कर्मचारियों को बड़े खर्चों के लिए लंबी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता था। अब सीमा को बढ़ाकर 1 लाख रुपये करने और स्वीकृति प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने से कई लाभ सामने आएंगे:
- त्वरित निपटारा: 1 लाख रुपये तक के दावों की स्वीकृति अब सिविल सर्जन के स्तर पर ही की जा सकेगी, जिससे समय की बचत होगी।
- पारदर्शिता: तीन सदस्यीय समिति द्वारा जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ेगी और गलत दावों के होने की संभावना कम होगी।
- कर्मचारी राहत: बढ़ती चिकित्सा लागत के बीच कर्मचारियों को आर्थिक सहायता मिलेगी।
- प्रशासनिक सुधार: मेडिकल कॉलेजों को जिम्मेदारी सौंपने से सिविल सर्जन का कार्यभार कम होगा और विशेषज्ञों की सलाह से निर्णय लेना बेहतर होगा।
प्रभावित क्षेत्र और जिम्मेदारियां
निर्णय में विभिन्न चिकित्सा संस्थानों को खास क्षेत्रों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इससे प्रत्येक जिले और प्रमंडल के दावों की जांच एक संगठित तरीके से की जा सकेगी। कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:
- दरभंगा मेडिकल कॉलेज: दरभंगा प्रमंडल।
- अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज, गया: मगध प्रमंडल के गया, औरंगाबाद और जहानाबाद जिलों के लिए।
- जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, भागलपुर: भागलपुर प्रमंडल।
इसके अतिरिक्त, यदि किसी स्वास्थ्य संस्थान में आवश्यक विभाग उपलब्ध नहीं है, तो पटना मेडिकल कॉलेज को प्राथमिकता से जांच केंद्र माना गया है। यह व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी दावा लंबित न रह जाए।
संकल्प का प्रभावी होना और प्रकाशन
यह संकल्प 27 जून 2024 को जारी होने की तारीख से लागू माना जाएगा। सरकार ने इसे बिहार राजपत्र के अगले विशेष अंक में प्रकाशित करने के लिए निर्देश दिया है, ताकि आम जनता और कर्मचारी इसके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें। इसके साथ ही, संबंधित अधिकारियों जैसे महालेखाकार, कोषागार अधिकारी, जिला अधिकारी, और मेडिकल कॉलेज के प्रमुखों को सूचना और आवश्यक कार्रवाई के लिए प्रतिलिपि भेजी गई है।
पुराने संकल्पों का संशोधन
इस नए संकल्प के साथ स्वास्थ्य विभाग के पूर्व के फैसलों- संख्या 946(14), दिनांक 14 अगस्त 2015, परिपत्र संख्या 997(14), दिनांक 28 अगस्त 2015, और संकल्प संख्या 1462(14), दिनांक 16 अगस्त 2021- को इस हद तक संशोधित माना जाएगा। यह सुनिश्चित करता है कि नई व्यवस्था पूर्व प्रणाली को पूरी तरह से बदल दे।
बिहार सरकार की यह पहल कर्मचारी भलाई की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। चिकित्सा खर्च की सीमा को बढ़ाकर और अनुमोदन प्रक्रिया को सरल बनाकर सरकार ने कर्मचारियों को न केवल सहायता प्रदान की है, बल्कि प्रशासनिक कार्यकुशलता में भी वृद्धि की है। यह निर्णय स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति सरकार की निष्ठा को उजागर करता है और यह सुनिश्चित करता है कि कर्मचारियों को समय पर सहायता मिले। भविष्य में इसकी सफलता इस पर निर्भर करेगी कि इसे कितना कुशलता से लागू किया जाता है।